अपनी पहली पोस्ट पर इतने सारे कमेंट देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है। साथ ही, साथी ब्लॉगरों से मिले इस उत्साह से रोमांच भी हो रहा है। इसके लिए सभी को धन्यवाद! अब मुझे यक़ीन है कि यह यात्रा – विचार-यात्रा, ख़ासी रोचक और अहम होगी।
राजेश, आपने बिलकुल सही कहा कि धर्म की ताक़त ऐसी है, जो तार्किक लोगों को भी अंधा बना देती है। लेकिन, एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने सीमित साधनों के ज़रिए मज़हबी प्रतिद्वन्द्विता के खोखलेपन की वजह को उजागर कर सकें। मैं अपनी पहली पोस्ट में ही कह चुकी हूं कि ब्लॉगिंग का मेरा विचार किसी स्थायी समाधान या कुछ ठोस जवाब पाने के लिए नहीं है। इसका मकसद महज़ ईमानदारी से और एजेंडा-मुक्त बातचीत शुरु करना है। मैं जानती हूँ कि ऐसा कहना, करने से कहीं कठिन है। दरअसल, हम सभी के अपने पूर्वाग्रह होते हैं -धार्मिक या अन्य या फिर निजी प्राथमिकताएँ। लेकिन, इस माध्यम की यही चुनौती है और शायद यही ख़ूबसरती भी। आपको क्या लगता है?
मिहिर, हामिदा की कहानी बिलकुल सामान्य हो सकती है। लेकिन यह एक बेहद ठोस संकेत है कि राज्य में शांति और धार्मिक सहनशीलता असंभव नहीं है। जो आज नहीं दिख रही है, ख़ासकर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति के अपने एजेंडे के चलते, साथ ही सरहद पार पड़ोसी द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा घातक तंत्र भी इसकी एक बड़ी वजह है। जम्मू की मूल निवासी होने की वजह से वहाँ के हालात को लेकर संवेदनशील हूँ और जागरुक भी। राज्य के दूसरे इलाक़ों के मुक़ाबले जम्मू को उपेक्षित और अनदेखा किए जाने भावनाओं से मैं वाकिफ़ हूँ। उन्हें आवाज़ देने में कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन मिहिर आप मुझे बताइए कि क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर लोगों को बांटकर हमें क्या मिल रहा है? ऐसे में, अलगवावादी और ग़ैर-अलगाववादियों में अंतर ही क्या है? क्या इससे उन अलगाववादी ताक़तों को ही फ़ायदा नहीं होगा, जिन्होंने पूरे कश्मीर आंदोलन की जड़ में धार्मिक भेदभाव की बात डाल दी है।
राजीव और सागर, मैं भी आशा करती हूँ कि हमारे राजनेता इतने अवसरवादी और बेशर्म न हों। लेकिन, इससे बचने का रास्ता क्या है? आख़िरकार हम लोग उन्हें अपने ही बीच से चुनकर ही सत्ता में लाए हैं।
आख़िर में... अमित, मेरे विचारों-अभिव्यक्तियों को समझने और सराहने के लिए धन्यवाद। शायद कुछ लोगों पर बरसात का ऐसा ही असर होता है!
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Saturday, August 9, 2008
उत्साहवर्द्धन का धन्यवाद
Posted by Sheetal Rajput at 4:54 PM
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15 comments:
शीतल जी आप की लेखनी मैं निश्चित रूप से एक एक अच्छा प्रवाह है ..पढकर बहुत अच्छा लगा..जम्मू की समस्या को निश्चित ही धार्मिक आधार पर जोङकर देखना गलती होगी ..पर क्या यह सच नहीं कि आतंकवादियों को तुष्ट करने के चक्कर मैं सरकार ने वहां के राष्ट्रभक्त नागरिक चाहे हिंदु या मुसलमान सभी को अनदेखा किया है
शीतल जी दरअसल आपकी पहली पोस्ट शानदार थी जिस पर इतने सारे कमेंट आपको मिले आप बहुत ही अच्छी वक्ता और अच्छी लेखक हो जारी रखो
aapki post achchi lagi.......
aapka umda lekhan aapke vayktitva ko nikharata hai...
jari rahe.....
शीतल जी, ब्लागजगत में आप का स्वागत है। धर्म मनुष्य के अस्तित्व में आने के बाद ही अस्तित्व में आया। धर्म के बारे में ऐतिहासिक और वैज्ञानिक समझ को विकसित कर ही इस बवाल को कम किया जा सकता है।
पहली पोस्ट में ही आप ने लोगों के सामने सही मुद्दा रख कर चौंका दिया है।
अब नियमित लिखें. अनेकों शुभकामनाऐं.
चलिए अच्छा है शीतल कि आप हिंदी में भी लिख रही हो, बहुत बढ़िया...स्वागत है
शीतल जी,
नेताओं की अवसरवादिता का जहाँ तक प्रश्न है मेरा मानना है कि उनकी कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है। हमें उन्हे चुनने के अलावा वापस बुलाने के भी अधिकार होने चाहिये। ...।खैर यह लम्बी चर्चा का मुद्धा है। आपका ब्ळोग जगत में पुन: हार्दिक स्वागत।
***राजीव रंजन प्रसाद
हिन्दी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में स्वागत है....आपको हिंदी ब्लॉग लिखता देख खुशी हुई। बोलते सुना था लेखन जारी रखें...सुंदर ढंग से विश्लेषण किया आपने.
बधाई.
aapki post achchhi lagi!!!!!!!!!
Aapke blog par Aaj aai fir tippaniyan dekh kar kalaka lekh bhi padha bahut sahi aur samyik likha hai aapne hamida aaj bhi waisa hi sochtaho jaise tab sochta tha yahi prarthana hai ishwar se. Welcome.
Sheetal ji swagat hai aapka is dunia me///
नियमित लेखन की शुभकामनायें।
shetal ji,
blog padh kar acha laga, yae aam blog ki hrah updash nahi jhad raha tha ,app ke anubhav batna acha laga. anubhav hi log sunana chate hai,updesh nahi. mubarak ho.
शीतल जी! नमस्कार!
आपको टीवी पर सुना है, पर आज आपको "पढ" भी लिया।.वो किसी चेनल के विचार है, और ब्लोग में आपके अपने। बहोत खूब, बहोत ही अच्छे विचार है आपके।उम्मीद करती हुं मेरेब ब्लोग पर ज़रूर आयेंगी, हमें "पढने' के लिये।
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