Thursday, August 21, 2008

बीती रात रस्किन बॉण्ड मेरे सपने में आए

मुशर्रफ के गली कूचे की यात्रा में रुकावट में लिए मुझे माफ करें। (वैसे,मैंने पहले ही आपको चेतावनी दी थी।)। दरअसल, आज मैं रस्किन बॉंड के बारे में बात करना चाहती हूं, जिन्हें मैंने कल सपने में देखा। सपने में, मैं एक बाइट लेने के लिए उनका पीछा कर रही थी, और एक भले इंसान की तरह रस्किन बॉंड ने मुझे बाइट दी भी।

वैसे,आपमें से ज्यादातर लोग रस्किन बॉण्ड के बारे में जानते ही होंगे। फिर भी, अगर कुछ लोग नहीं जानते, तो उनके लिए इस मशहूर और प्यारे से लेखक का छोटा सा परिचय जरुरी है। जन्म से ब्रिटिश, और शौक से भारतीय रस्किन बॉंड ने अपना पूरा जीवन लेखन को समर्पित कर दिया। वो गढ़वाल की ऊंची पहाड़ियों पर मसूरी में बने अपने घर से लिखते हैं, और वो वहां पिछले 45 साल से रह रहे हैं। मैंने सबसे पहली बार रस्किन को अपने स्कूली दिनों में पढ़ा था। उन्होंने बच्चों के लिए बहुत लिखा है। कहानियां, लघु कहानियां, नॉवल पूरे देश में स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा रहे हैं। मैं स्कूली दिनों से ही उनकी फैन हूं और उनकी कहानियां मुझे बहुत अच्छी और भावपूर्ण लगती थीं, लेकिन मैं उनकी जबरदस्त फैन बनी उनके निबंध और डायरी के अंशों खासकर रेन इन द माउंटने में संग्रहित अशों की वजह से। मुझे ये किताब अपने कॉलेज के फर्स्ट इयर में मिली थी। दिल को जीतने वाली सादगी और कहने के बेहद खूबसूरत अंदाज ने मुझे उनका प्रशंसक बना दिया। वो पेड़ों से,पहाड़ों से,घाटी से और आम लोगों से बात करते हैं। सब सामान्य हैं,लेकिन उनका अंदाज कहीं गहरे तक पाठक को भेद जाता है। उन्हें पढ़ते वक्त मेरे भीतर भी नाटकीय तौर पर बहुत कुछ बदल गया। इससे मुझे सामान्य चीजों में छिपे करिश्में, उसकी असमान्यता और प्रकृति की अहमियत का पता चला। मैंने उनके कुछ अंश बार बार, कई बार पढ़े। उनके लेखन ने मेरी कल्पनाओं को पंख लगाए और मैंने खुद से यह वादा किया कि एक दिन मैं भी उनकी तरह लिखूंगी।

तो ये है रस्किन बॉंड के लेखन का प्रभाव। लेकिन, बहुत विनम्र रस्किन इसे स्वीकार करने में काफी संकोची हैं। दरअसल, उनका अपने बारे में कहना है" लेखकों में मैं बहुत बड़ा लेखक नहीं हूं। मैं बहुत सामान्य भले न हूं। मैं बस खुद को किसी समुद्री बीच पर चमकते हुए कंकड़ की तरह देखना चाहता हूं। लेकिन, मैं चाहता हूं कि मैं एक रंगीन कंकड़ बनूं कि लोग मुझे उठाएं, कुछ देर हाथ में पकड़कर खुशी महसूस करें और शायद कभी कभार अपनी जेब में भी डाल लें। अगर,किसी को परेशानी होती है तो वो मुझे फिर समुद्र में फेंक दे। शायद,कोई लहर मुझे फिर बीच पर लाकर पटक दे,और फिर कोई मुझे दोबारा उठा ले। (रस्किन ,अवर एंड्यूरिंग बॉंड से अंश)"

रस्किन बॉड से मेरी पहली और इकलौती मुलाकात खासी नाटकीय थी। दस साल पहले, मैं कुछ दोस्तों के साथ मसूरी गई थी। जुलाई का महीना था,और बरसात शुरु ही हुई थी। पहाड़ों ने छटा अद्भुत थी, और जैसा रस्किन लिखते हैं "one could watch from the window trees dripping and the mist climbing the valley" (quote from the book, RUSKIN, OUR ENDURING BOND). मेरे जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा से मिलने के लिए ये सही योजना थी। लेकिन कैसे? यही सबसे बड़ा सवाल था। मैं मसूरी में उनके रहने वगैरह के बारे में बिलकुल नहीं जानती थी, और न ही मैं ऐसे किसी शख्स को जानती थी,जो मुझे उनके बारे में सही जानकारियां दे सके। मैं उस वक्त कॉलेज में थी,और ज्यादा संपर्क भी नहीं थे। मैंने 'रेन इन द माउंटेंस' में पढ़ा था कि वो इवे कॉटेज नाम की किसी जगह पर किराए पर रहते हैं। लेकिन,ये किताब भी कुछ साल पहले लिखी गई थी। रस्किन वहां से कई और जा सकते हैं ! लेकिन,मेरे पास इसके अलावा कोई दूसरी जानकारी भी तो नहीं थी लिहाजा मैंने अपने दोस्तों को साथ लेकर उस बरसाती दोपहर में मिशन रस्किन शुरु कर डाला। स्थानीय लोगों से पूछते पाछते इवी कॉटेज की तरफ जाने वाले पहाड़ी रास्ते पर चलना शुरु किया। मुझे उस वक्त बरसात की बिलकुल परवाह नहीं थी, लेकिन उस वक्त इस टॉर्चर के लिए मेरे दोस्त मुझसे खासे खफा थे। मैं ये बात उनके चेहरों पर साफ पढ़ सकती थी। लेकिन, एक बार जब हम इवी कॉटेज पहुंचे ,तो उन्होंने सीढ़ियों पर चढ़ने से ही इंकार कर दिया,जहां रस्किन अपने गोद लिए परिवार के साथ रहते थे। उन्हें नीचे छोड़कर,और भारी आशंकाओं के बीच मैंने दरवाजा खटखटाया। मन में सवाल था कि क्या होगा अगर वो यहां नहीं रहते हुए? क्या होगा अगर उन्हें मेरा बिना इजाजत लिए आना अच्छा नहीं लगा? मैं बहुत नर्वस थी। रस्किन के एक पोते ने दरवाजा खोला । मैंने उन्हें अपने आने की वजह बतायी। उसने मुझसे इंतजार करने को कहा और अंदर चला गया। कुछ पल बाद, रस्किन बॉंड खुद दरवाजे पर आए। जी हां, बिलकुल वही थे-बिलकुल जीते जागते। मैं बिलकुल चुप थी,और उन्हें देखे जा रही थीं। मेरे संकोच को भांपते हुए रस्किन ने चुप्पी तोड़ी, और बस यही से हमारी बातचीत शुरु हुई।

'Yes, young lady?'

'Sir, I am a huge fan of your writings. I came all the way from Delhi to meet you. I hope , I didn't disturb you.'

'Well, I was having my lunch! You came all by yourself?'

'No Sir, with a few friends.'

'Where are they?'

'They're waiting downstairs. They were too scared to come up.'

'What? You left them outside in the rain. Call them up.'

थोड़ी देर में मेरे बाकी दोस्त भी ऊपर आ गए। हमने थोड़ी ही देर रस्किन से बात की,लेकिन ये मुलाकात कभी न भूलने वाली थी।

बहरहाल, मैं बीती रात के अपने सपने पर आती हूं। मैं जब सुबह जागी,तो मुझे भाई की तरफ से एक सरप्राइज गिफ्ट मिला। उसने मेरे लिए रस्किन बॉड की एक किताब खरीदी थी। और, यकीं मानिए कि इस किताब पर ऑटोग्राफ थे-खुद रस्किन बॉड के। दरअसल, दिल्ली के एक मशहूर बुकसेलर ने "रस्किन बॉण्ड से मिलिए" कार्यक्रम का आयोजन किया था। और, मेरा भाई,जब उस बुकस्टोर के पास से गुजर रहा था,तभी उसे रस्किन की एक झलक मिल गई । रस्किन उस वक्त अपने प्रशंसकों को अपने ऑटोग्राफ दे रहे थे। रस्किन के लिए मेरी दीवानगी से परिचित मेरे भाई ने एक किताब पर मेरे लिए भी रस्किन से ऑटोग्राफ ले लिए। और विश्वास कीजिए,जब से इस किताब को मैंने हाथ में लिया है, मैं मुस्कुरा रही हूं।

To conclude, in Ruskin's own words, 'Life has not exactly been a bed of roses, yet, quite often, I have had roses out of season.'( from the book, RUSKIN, OUR ENDURING BOND)

7 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

पसंदीदा लेखक से मिलने का आनंद कुछ और ही होता है। फिर भी उस के हस्ताक्षर युक्त पुस्तक मिल जाए पढ़ने को तो लगता है। हम उस से बात कर रहे हैं।

Udan Tashtari said...

सही है...

seema gupta said...

उसने मेरे लिए रस्किन बॉड की एक किताब खरीदी थी। और, यकीं मानिए कि इस किताब पर ऑटोग्राफ थे-खुद रस्किन बॉड के।
Hi great to read your article. you are lucky one to get ur favt book of your favt writer with his autograph. all the best

Regards

L.Goswami said...

पसंदीदा लेखक से मिलने की बधाई.

संगीता पुरी said...

सपने उसी के आते हैं , जो दिलोदिमाग में बसे होते हैं , खैर आपको सपना भी आया और सुबह सुबह उनकी लिखी पुस्तक भी मिल गयी , वह भी आटोग्राफ के साथ। और क्या चाहिए ?

vipinkizindagi said...

मजेदार पोस्ट ...

सागर नाहर said...

विषयांतर तो होते रहना चाहिये, तभी लेखक को पढ़ने के लिये पाठकों का उत्साह बना रहता है, कि कल शीतलजी के ब्लॉग पर क्या पढ़ने को मिलेगा?
आपने सही समय पर विषयांतर किया और लेख भी बहुत सही रहा।
सपने सच हो जायें, जिनके हम प्रशंसक हों और वे हमारी नजरों के सामने अचानक आ जायें तो बहुत अच्छा लगता है।
आपके सपने सच हुए, और वो भी इतनी जल्दी!! पर्क यही था कि रस्किन बॉण्ड खुद सामने ना होकर हस्ताक्षरित पुस्तक के रूप में थे.. बधाई हो शीतल आपको।
... बढ़िया लेख के लिये भी!!