लोग ब्लॉग क्यों लिखते हैं, या सीधे-सीधे कहूँ तो मैंने ब्लॉग लिखने और ब्लॉगर की जमात में शामिल होने का फ़ैसला क्यों किया?
मैंने इस बावत काफ़ी सोचा है। और आज जब मूसलाधार बारिश हो रही है तो मुझे लगता है कि मैंने शायद जवाब पा लिया है।
बारिश के साथ हमेशा रोमांचित होने की वजह होती है, बिना इस बात की परवाह किए कि सड़कों पर पानी भर आया होगा, मैन्होल्स खुले होंगे, ट्रैफ़िक जाम होगा, बिजली कटेगी! आकाश से बरसने वाली हल्की बौछारें सामान्य से शख़्स को भी रचनात्मक बनने के लिए प्रेरित करती हैं। कवि के लिए छत और खिड़की के बाहर धीरे-धीरे गिरती पानी की बूंदें एक कविता ही होती हैं। संगीत के दीवानों के लिए यह सुरों का उतार चढ़ाव है, जबकि फ़ुटपाथ पर सोने वाले भिखारी के लिए ये तकलीफ़ों की कभी न ख़त्म होने वाली घड़ी है।
अच्छा-बुरा, खट्टा-मीठा कुछ भी हो; बारिश की हर बूँद ख़ुद में एक कहानी है। बस, यहीं मुझे अपने सवाल का जवाब भी मिल गया है। दरअसल बारिश की तरह, मैं महसूस करती हूँ कि मेरे पास भी कहने के लिए एक कहानी है। सचाई ये भी है कि तक़रीबन एक दशक तक इस बड़ी दुनिया में कहानियों का पीछा करते हुए और टीवी स्टूडियो में भीतर उनका जवाब पाने की कवायद के बीच, मेरे पास भी कहने को बहुत कुछ है और कई अनसुलझे सवाल हैं। तमाम कहानियाँ निजी भी और परायी भी। लोगों की, इलाक़ों की, घटनाओं की, ग़ैर-घटनाओं की कहानियाँ; जिन्हें मैं सम्मत विचार वाले और भिन्न सोच रखने वालों के साथ भी बांटना चाहती हूँ। मेरा मक़सद किसी नतीजे पर पहुँचना या कोई सटीक जवाब पा लेना नहीं है। दरअसल मक़सद है एक यात्रा की शुरुआत करना, विचार-यात्रा की। एक सच्ची, सही और बिना किसी एजेंडा वाली विचार-यात्रा और मेरे गृह-प्रदेश जम्मू-कश्मीर में मौजूदा गतिरोध के बीच जो पहली कहानी मेरे ज़ेहन में आती है, वो है हमीदा की कहानी। हमीदा यादों के दूर कोने से आज झाँक रहा है, लेकिन वो मेरे ख़ूबसूरत राज्य के शांतिप्रिय दौर की न भूलने वाली एक याद है।
काफ़ी साल पहले, १९८२ में, मैं पहली बार कश्मीर गयी थी। मेरे पापा श्रीनगर में तैनात थे, जबकि हमलोग जम्मू में रहते थे। मैं उस वक़्त पहली क्लास की स्टूडेंट थी और उस वक़्त तक मैंने कश्मीर को या तो फ़िल्मों में देखा था या फिर पापा के पोस्टकार्ड्स में। हम पापा से मिलने गर्मियों की छुट्टी में गए थे। हालाँकि उस वक़्त मैं बहुत छोटी थी, लेकिन मुझे याद है कि फ़िल्मों में अक्सर दिखाए जाने वाले बारामूला के यूकेलिप्टस पेड़ों की बड़ी क़तार के पास जैसे ही हमारी बस पहुंची थी, मैं ख़ुशी से उछल पड़ी थी। पापा श्रीनगर में कश्मीरी स्टाइल वाले सरकारी बंगले में रहा करते थे और स्थानीय मुस्लिम लड़का हमीदा उनका नौकर था।
हमीदा एक प्यारा-सा लड़का था, जिसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बिखरी रहती थी। वो हमारे लिए ज़ायकेदार कश्मीरी व्यंजन और गर्म-गर्म कश्मीरी कहवा कभी भी बना दिया करता था। कोई भी पहर हो, हमीदा से बस कहने की देर थी कि वो चीज़ हाज़िर हो जाया करती थी। उसका मुझसे और मेरे छोटे भाई से बड़ा लगाव था। अक्सर हम आवाज़ लगाते - हमीदा... और वो अपनी जेब में कुछ-न-कुछ लेकर हमारे पास दौड़ आता था। हमारे मनोरंजन के लिए वो टेप रिकॉर्डर बजा दिया करता था। वो गाने का शौक़ीन था और कभी-कभार किचन में गुनगुनाया करता था। उन दिनों रोज़ाना कश्मीर के मुग़ल गार्डेन की उन सपनों-सी सैरगाह में वो हमारा साथी हुआ करता था। वो हमें वहाँ के बारे में खूब बताया करता था, ख़ासकर परीमहल के बारे में। उसकी कहानियों में बहुत रस था। खंडहर पड़े महलों में रात को परियों के आने की कहानियों से हम रोमांचित हो जाते थे। मशहूर शिव मंदिर, शंकराचार्य की ओर चढाई करते हुए, वो कभी ख़त्म ना होने वाली सीढियों पर हमारा हाथ पकड़ कर चढ़ता रहता था।
हमारी कश्मीर की रोमांचकारी ट्रिप दस दिनों में ख़त्म हो गयी और हम जम्मू वापस लौट आये। स्कूल की भागदौड़ में सब कुछ जल्द ही भूल गये, लेकिन हमीदा की याद बनी रही। बाद में हम कई बार कश्मीर गए लेकिन हमीदा हमें दोबारा नहीं मिला। आज मैं देख रही हूँ कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड की ज़मीन के मसले पर जम्मू और कश्मीर के लोगों के बीच घमासान मचा हुआ है, तो सोचती हूँ कि हमीदा आख़िर इस बारे में क्या सोच रहा होगा! क्या वो अभी भी हमारे लिए वही गर्मजोशी और दोस्ताना रवैया रखता होगा। या वो हमें जम्मू का दुश्मन मानता होगा। मैं सोचती हूँ, लेकिन मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई हूँ।
मानो उग्रवाद की कम आफ़त थी, जो यहाँ के बाशिंदे खुदगर्ज़ नेताओं की बांटने वाली राजनीति के चक्कर में फँस गए। नेता दोनों क्षेत्रों के लोगों के बीच सांप्रदायिक और क्षेत्रीय भावनाएँ भड़काकर नफ़रत और बैर फैला रहे हैं। इसका मकसद जम्मू और कश्मीर के बीच पहले से खिंची खाई को इतना गहरा कर देना है कि ये कभी न पट सके। और फ़ायदा... तुच्छ वोटों का। वरना आप ही सोचिए कि जब राज्य में कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं तो ही इस मसले को इतना तूल क्योँ दिया जा रहा है।
राज्य और केंद्र दोनों सरकारों ने पहले तो हद से ज़्यादा हालात ख़राब हो जाने दिया और अब सर्वदलीय बैठक कर रहे हैं ताकि कोई तात्कालिक हल निकल सके। अचरज होता है कि बिगड़ रहे हालात पर इतनी देर से तवज्जो दी गयी। अब यही उम्मीद की जा सकती है कि मौजूदा प्रयास गंभीर हैं और हर एक पार्टी मसले को सुलझाने के लिए गंभीर प्रयत्न करेगी, ना कि तनावपूर्ण हालात में फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगी।
इस बीच नेशनल टीवी पर एक कश्मीरी दुकानदार की व्यथा सुनायी पड़ी, "इन सियासतदानों ने तबाह कर दिया इस रियासत को..."
दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर का यही आज कटु सत्य है।
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Friday, August 8, 2008
श्री गणेश!!!
Posted by Sheetal Rajput at 12:18 PM
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33 comments:
Warm welcome.... श्री गणेश से लेकर कश्मीर.... होना ही है.... धर्म का उन्माद है ही ऐसा... आँख वालो को भी अँधा कर देता है....
आपका संस्मरण भावपूर्ण और चिंता जायज है। लिखती रहें यूंही।
स्वागत ..जम्मू शहर से मैं भी दिल से जुड़ी हुईं हूँ ..आज वहां के यह हालत देख कर अच्छा नही लगता
शीतल जी,
सचमुच एक प्रांत दो फाँक नज़र आ रहा है। सियासत की गोटियाँ बिलकुल सही बैठी हैं, एक दो चाल की बात ही है फिर "शह" और "मात"।
कश्मीर की सियासत देश के फिछडेतम प्रांतों से अधिक गंदी है। देशचूसक नेता और घाटी के आतंकी इस धरती के नरक को और विषैला बना रहे हैं। जमीन का यह झगडा आम आदमी की संवेदना को खुरच कर पैदा किया गया है फिर पुराने जख्मों को कुरेदने का अर्थ ही है लहू-रंजित होना। एसी समस्या पैदा कर दी गयी है कि प्रत्येक समाधान में "आगे कुँवा और पीछे खाई है"।
काश! कि हमारे नेता अपराधी, मौकापरस्त और निर्लज्ज न होते।
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com
ब्लॉग जगत में आने की बधाई स्वीकार करें. अच्छा लिखा है, ऐसे ही लिखती रहे और हमें जानकारी देती रहें.
"कवि के लिए छत और खिड़की के बाहर धीरे-धीरे गिरती पानी की बूंदें एक कविता ही होती हैं। संगीत के दीवानों के लिए यह सुरों का उतार चढ़ाव है, जबकि फ़ुटपाथ पर सोने वाले भिखारी के लिए ये तकलीफ़ों की कभी न ख़त्म होने वाली घड़ी है।"
"दरअसल मक़सद है एक यात्रा की शुरुआत करना, विचार-यात्रा की।"
.... सुंदर अभिव्यक्तियाँ ।
आशा है की आगे भी ऐसी ही अच्छी हिन्दी पढ़ने को मिलती रहेगी ।
कृपया अगर वर्ड-वैरीफिकेशन हटा लें तो कमेंट्स करने में सुविधा होगी ।
स्वागत है ब्लागजगत में। अच्छी पोस्ट।
हमीदा कहां होगा ? आपकी फिक्र वाजिब है , मगर उसकी तलाश जारी रहे।
SWAAGAT HAI..AAPKA ,AAPKI LEKHNI KAA..
स्वागत है शीतल आपका
आज तक समाचार पढ़ते हुए देखते थे आपको, आगे से आपके लिखे को पढ़ेगे जानकर अच्छा लग रहा है।
विवाद की जड़ ही राजनेता और देशद्रोही नेता हैं, ये इन्होने कितने हमीदाओं के मन में जहर भर दिया है। अब इन्होने धर्म के नाम पर बँटवारे का नया शिगूफा छोड़ा है, दुर्भाग्य है इस देश का कि ऐसे गद्दारों को सज़ा देने की बजाय सरकारें भी उनके तलुए चाटती है।
दरअसल ये नहीं चाहते कि विवाद सुलझे, क्यों कि जिस दिन विवाद सुलझ गया उस दिन ये बेकार हो जायेंगे।
शीतल हो सके तो वर्ड वेरिफिकेशन को हटा दीजिये यह टिप्प्णी करने में परेशानी करता है।
॥दस्तक॥
चिठ्ठा जगत में स्वागत है आपका.
आपका लेख बहुत ही चरोत्तेजक और सामयिक है.
सुंदर ढंग से विश्लेषण किया आपने.
बधाई.
शीतल जी, सबसे पहले आपका ब्लोग की दुनिया में स्वागत हैं। कल से टीवी पर देख रहा था 8.8.8 अशुभ दिन हैं पर लगता हैं ब्लोग की दुनिया के लिए शुभ हैं। आज दो दो टी वी हस्ती ब्लोग की दुनिया में आ गई । ढेरो शुभकामनाये।
बहुत अच्छा लगा आपको यहां देखकर...सालों से आपको बस सुनते ही आ रहे हैं...अब यहां दोतरफा संवाद के माध्यम से आपसे बहुत कुछ जानने को मिलेगा ऐसी आशा है
शुभकामनाएं
शीतल जी बहुत प्रसन्नता का विषय है कि आप ने चिट्ठा जगत मैं पदार्पण किया ...पर बहुत दुख हुआ कि आप जम्मु से हैं आपने एक अति साधारण सी कहानी से अपने ब्लोग की शुरुआत की अच्छा होता आज आप उस व्यक्ति को याद करती जिसने आतंकवादियों के सामने सरकार के घुटने टेकने के विरोध में जहर खाकर अपनी जान दे दी..या के जम्मू के लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों का हनन किस तरह से किया जा रहा है स्वतंत्रता के बाद से ही ...शायद यहां टी आर पी का लफङा नहीं रहेगा
aapne shreganesh kiya, hum swagat karte hain aapka.
chaliye aapke behane chote parde ke peeche ki kehani ka pata chalega...
शीतल जी, सबसे पहले आपका ब्लोग की दुनिया में स्वागत हैं।xx
शीतल जी आपका गर्मागर्म स्वागत है।
जैसे बारिश की एक एक बूंद
बरसती है लगातार
उसी तरह विचार उपजते हैं
कतार बेकतार लगातार।
बारिश न हो तो बूंद न होगी
पर विचार न हो ऐसा नहीं होता
जीवन है तो विचार है
विचार ही तो सच्चा जीवन है
विचारों का वन है
जीवन जी वन (जंगल) विचारों का
एक नहीं अनेक और सभी नेक।
शीतल जी,
सर्वप्रथम तो आपका ब्लॉग नगरी में स्वागत है। अच्छा है कि अब आपको भी अपनी बात कहने से पहले संपादक की न तो कैची देखनी पड़ेगी और न ही टीआरपी का संकट आपको परेशान करेगा।
वैसे एक बात ने मेरे दीमाग में संशय पैदा किया। आपने और पुण्य प्रसून बाजपेयी ने लगभग एक साथ ब्लॉगिंग की, दोनों का ब्लॉग एक जैसा, क्या दोनों ने मिलकर इस काम के लिए कोई एम्प्लाई रख लिया है क्या?
हिन्द-युग्म
स्वागत है आपका। आपको पढ़ना सुखद अनुभव रहा। ब्लाग जगत में आपके लेख तथा अनुभव पढ़ने की सदा प्रतीक्षा रहेगी।
नाम 'शीतल' पर लेखन एकदम गर्मागर्म, burning topic. भाषा प्राञ्जल, शैली अनुपम, ... अद्भुत...
स्वागत है।
स्वागत है ब्लागजगत में. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.
कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी
स्वागत है आप का, दुकानदार का कहना एकदम सही है। सदूर प्रांतो में बैठे हम अंदर ही अंदर उबलते है अपने ही देश के दूसरे नागरिकों की ऐसी व्यथा देख कर पर समझ नहीं पाते कि क्या करे।
सुन्दर अभिव्यक्ति
SWAAGATAM
बहुत अच्छा. लिखते रहिये.
---
यहाँ भी आयें;
उल्टा तीर
हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।
आप ठीक समझें तो वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। मुझे तीन बार यह टिप्पणी करनी पड़ी। उम्र का तकाज़ा भी है, आंखें कमज़ोर हो रही हैं।
कमेंट मॉडरेशन रहने दें। यदि वह नहीं है तो उसे चालू कर दें ताकि स्पैम, शालीनता से पर टिप्पणियां न पोस्ट हों।
हिन्दी ब्लॉगजगत मे आपका स्वागत है। आशा है आप यूं ही लगातार लिखती रहेंगी। किसी भी प्रकार की तकनीकी सहायता के लिए हम आपसे सिर्फ़ एक इमेल की दूरी पर है।
HI, Most welcome. enjoyed reading ur article, all the best for future and congrates for your firts sucessful post"
Regards
शीतल जी नए चिठ्ठे के लिए बधाई हो !
आशा रखता हूँ कि आप भविष्य में भी इसी प्रकार लिखते रहे |
आपका
विजयराज चौहान (गजब)
http://hindibharat.wordpress.com/
http://e-hindibharat.blogspot.com/
http://groups.google.co.in/group/hindi-bharat?hl=en
उन दिनों रोज़ाना कश्मीर के मुग़ल गार्डेन की उन सपनों-सी सैरगाह में वो हमारा साथी हुआ करता था। वो हमें वहाँ के बारे में खूब बताया करता था, ख़ासकर परीमहल के बारे
में। उसकी कहानियों में बहुत रस था। खंडहर पड़े महलों में रात को परियों के आने की कहानियों से हम रोमांचित हो जाते थे। मशहूर शिव मंदिर, शंकराचार्य की ओर चढाई करते हुए, वो कभी ख़त्म ना होने वाली सीढियों पर हमारा हाथ पकड़ कर चढ़ता रहता था।
सच ज़मीन के स्वर्ग के लिए आपने सभी को एक नई दिशा दी है
आभार
शीतल जी
आपका ब्लाग देखकर प्रसन्नता हुई। आप उस प्रचार माध्यम से जुड़ी हुईं हैं जो बहुत लोकप्रिय है और आशा है कि यहां आप वह सब लिखेंगी जो पर्दे पर व्यवसायिक बाध्यताओं के कारण नहीं कह पातीं। मैं आपके ब्लाग को अपने ब्लाग पर लिंक करना चाहता हूं, वैसे यहां हम लोग किसी से अनुमति नहीं मांगते क्योंकि सभी प्रसिद्धि पाने की कतार में हैं पर आप चूंकि प्रसिद्धि के शिखर पर हैं इसलिये इसकी आवश्यकता अनुभव हो रही है। हिंदी ब्लाग जगत पर आपकी सफलता के लिये मेरी शुभकामनायें
दीपक भारतदीप
kripya kar seting kalam se word verification hata len isse kament likhne men dikkat atee hai.
शीतल जी
ब्लॉग पर आने के लिए बधाई..
लेख की लम्बाई थोड़ा कम रहे तो बेहतर हो.
हमीदा का जिक्र सुखद है..
फ़िल्म 'जब जब फूल खिले ' याद आ गयी.
(हमीदा में शशि कपूर दिख रहा है)
वो कश्मीर अब तो सिर्फ़ पुरानी फिल्मों में ही नजर आता है..
पहले सिर को हल्का झटक कर बातों पर ज़ोर देने की आपकी इश्टाइल हम मन्त्रमुग्ध होकर देखा करते थे। फिर न्यूज़ की जगह जादू-टोना, भूत-बैताल, कथा-पुराण, अंधविश्वास और टी.आर.पी रेस में न्यूज़ चैनेल्स का कबाड़ा हो लिया तो रिमोट फेंककर की-बोर्ड और माउस पकड़ लिया था। अब यहाँ आकर और आपको पाकर जो कुछ ‘मिस’ करते थे वह कसर भी जाती रही।
ब्लोगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है. जम्मू-कश्मीर से जज्बाती लगाव है, इसलिए इसके बारे में पढ़कर और अच्छा लगा.
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