जो तस्वीर आप यहाँ देख रहे हैं, वह छः साल पहले के ईराक़ की कड़वी हक़ीक़त को बयान करती है। बदनसीबी से आज भी हालात वैसे ही हैं। यह तस्वीर मैंने अप्रैल 2003 में ईराक़ पर अमरीकी हमले के महज़ एक हफ़्ते बाद ली थी। बग़दाद के एक प्रमुख बाज़ार में एक दुकानदार उन अमरीकी सैनिकों के साथ आगबबूला होकर झगड़ रहा था, जो उसकी दुकान के ठीक बाहर तैनात थे। वह उन्हें अपनी जगह से हटाना चाहता था। वे आधुनिक हथियारों से लैस थे और वह ख़ुद खाली हाथ खड़ा था। लेकिन उसे अपनी ज़िन्दगी का कोई डर नहीं था। मुझे लगता है कि यह तस्वीर साफ़ तौर पर ईराक़ के कभी न हार मानने वाले आक्रामक जज़्बे को दर्शाती है। इस प्राचीन सभ्यता के निवासी, जिसे हम मेसोपोटामिया के नाम से जानते हैं, इतिहास में इतना ख़ून-खराबा और हिंसा देख चुके हैं कि अब उनके ख़ून में ज़रा भी भय बाक़ी नहीं बचा है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश और उनके सहयोगियों ने ईराक़ी मानस व देश के जटिल सामाजिक ढाँचे के प्रति अपनी नासमझी और अदूरदर्शिता के चलते ऐसे उलझन भरे हालात पैदा कर दिए हैं, जिन्हें सुलझाना नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए काफ़ी मुश्किल भरा साबित होगा।
बुश जूनियर का 2003 का "ऑपरेशन ईराक़ी आज़ादी" दरअसल "ऑपरेशन ईराक़ी बर्बादी" निकला और उनके कार्यकाल की सबसे चुभन-भरी ज़िम्मेदारी साबित हुआ। पहली बात तो यह कि इसने स्वतंत्रता-प्रेमी ईराक़ियों की आज़ादी के एहसास को तार-तार कर दिया और दूसरा, इसने ईराक़ियों के तीन अहम तबक़ों - शिया, सुन्नियों और कुर्दों के बीच की खाई को और भी चौड़ा कर दिया। कुर्दों का भरोसा जीतने और उनको दबाने व अलग-थलग रखने की ऐतिहासिक ग़लती को सुधारने की जल्दबाज़ी में बुश सरकार ने अमेरिका द्वारा बहाल किए गए लोकतंत्र का एक बड़ा हिस्सा कुर्दों के हवाले कर दिया। ऐसा करके उन्होंने शिया और सुन्नी समुदाय को दरकिनार कर दिया। साथ ही यह क़दम उन्हें ईराक़ी गणतंत्र के लिए कुर्दों का विश्वास दिलाने में भी बुरी तरह नाक़ामयाब रहा। कुर्द, जो हमेशा से ख़ुद को एक अलग कौम समझते आए हैं, लोकतांत्रिक और संगठित ईराक़ के अमेरिकी सपने से इत्तेफ़ाक नहीं रखते हैं।
अमरीकी हुकूमत बाक़ी दो समूहों - देश के बहुसंख्यक शियाओं और अल्पसंख्यक सुन्नियों के बीच संतुलन स्थापित नहीं कर सकी। शिया आरोप लगाते हैं कि उन्होंने सुन्नियों का साथ दिया, जिन्हें वे अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं और सुन्नी, जो अभी तक अपने सबसे ताक़तवर नेता सद्दाम हुसैन के पतन का घाव सहला रहे हैं, अमेरिका पर शिया और कुर्द समुदाय की तरफ़दारी का आरोप मढ़ते हैं। इसका परिणाम है बुरी तरह बँटा हुआ और अस्त-व्यस्त ईराक़, जो हर पल उबल रहा है और गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। आत्मघाती हमले और साम्प्रदायिक टकराव हर रोज़ की बात हो गए हैं और ईराक़ में तैनात एक लाख पैंतालीस हज़ार से ज़्यादा अमेरिकी सैनिक आम ईराक़ियों का विश्वास और सहयोग जीतने में विफल रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए आगे काफ़ी चुनौती भरा काम है। उदारवादी होने की वजह से ओबामा ने ईराक़ पर अमेरिकी हमले की हमेशा मुख़ालफ़त की है और बाद में बदहाल ईराक़ में बुश हुकूमत की नीतियों की कड़ी आलोचना की है। पिछले साल के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्होंने अपने एक मशहूर भाषण में कहा था - "मैं 2002 में इसके ख़िलाफ़ था, 2003 में भी, 2004, 2005, 2006, 2007 और 2008 में भी; और 2009 में मैं इस युद्ध को ख़त्म कर दूंगा।" यहाँ तक कि ओबामा ने ईराक़ से सभी अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने की 16 महीने की डेडलाइन भी तय कर ली है। हालाँकि सुरक्षा को लेकर वहाँ के नाज़ुक हालात को देखते हुए विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी सैनिकों के लौटने के बाद ईराक़ में गृह युद्ध जैसी स्थिति हो सकती है। और यही ओबामा के लिए बड़ी चुनौती है - अपने सैनिकों को हटाने के साथ ही ईराक़ में लोकतंत्र बरक़रार रखना और पूरी तरह नहीं तो कम-से-कम आंशिक तौर पर ही बुरी तरह विभाजित ईराक़ी समाज के तीनों वर्गों के बीच शांति बनाए रखना, ख़ास तौर पर शिया और सुन्नी समुदाय के बीच।
ज़ाहिर तौर पर व्हाइट हाउस में बदलाव की लहर पर सवार होकर आए इस सैंतालीस वर्षीय अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए यह इतना आसान नहीं होगा। और केवल अमेरिका ही नहीं है जो बदलाव की उम्मीद से ओबामा को निहार रहा है। सारी दुनिया की निगाहें ओबामा की तरफ़ हैं और बाक़ी दुनिया की तरह ही ईराक़ भी बदलाव के लम्हों का इंतज़ार कर रहा है। ईराक़ अपनी दास्तान पूरी होने की बाट जोह रहा है... आज़ादी की ओर क़दम बढ़ाने के लिए और स्थायी शांति पाने के लिए।
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Tuesday, January 20, 2009
बराक ओबामा और ईराक़ की अधूरी दास्तान
Posted by Sheetal Rajput at 7:21 PM
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ईराक़,
बराक ओबामा
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29 comments:
आज की तारीख में बड़ा मुश्किल है किसी मुल्क पर सीधा शासन करना-अमेरिका को समझना चाहिए की आज का इराक या अफगानिस्तान 18वीं सदी का एशिया या अफ्रीका नहीं है कि तकनीक से लैश पश्चिम के लोगों ने बड़ी आसानी से वहां कब्जा भी जमा लिया और विद्रोह का भी दमन कर दिया। इराक पर हमले की वजह दुनिया अभी तक समझ नहीं पाई है। जिस तेल के लिए अमेरिका ने इतने बेकसूरों का खून बहाया है वो सोवियत संघ के पतन के बाद ही संभव हो पाया है। कुछ दिनों तक तो ऐसा होना-खून खराबे के बाद भी संभव दिखता है लेकिन इन देशों की जनता के प्रतिरोध को देखते हुए ये बिल्कुल मुश्किल काम है कि अमेरिका अपने सिपाहियों को मरता देखता रहे और तेल के लिए अपनी जान जोखिम में डाले रहे। दूसरी बात ये कि आगामी 10 से 20 साल बाद चीन की ताकत जो उभरकर सामने आने वाली है उसमें ये और भी मुश्किल होगा कि अमेरिका को इन इलाकों में फ्री हेंड मिले। तबतक अमेरिका पूरे इस्लामी जगत को अपना दुश्मन बना चुका होगा। हां उसके दोस्तों के खाते में हिंदुस्तान जैसे देश तब तक जुड़े चुके होंगे-लेकिन ये कहना मुश्किल है कि भारत अमेरिका की हर बात को आंख मूंदकर स्वीकार कर लेगा-आखिर उसके भी तो क्षेत्रीय हित अरब से गहरे जुड़े हुए हैं। तो फिर आनेवाली दुनिया का स्वरुप क्या है..?इतना तो अमेरिका के थिंकटैंक भी मान चुके हैं कि आनेवाली दुनिया वहुध्रुवीय होगी लेकिन वो उसमें भी अपने खेमे का वहुमत देख रहे हैं। चीन की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए अमेरिका यहीं चाहेगा कि दुनिया 5-7 शक्ति केंद्रों में बंट जाए जिसमें चीन के अलावे सारे उसके दोस्त हों। लेकिन कई चीजें ऐसी हैं जो किसी भविष्यवाणी की मुंहताज नहीं होती-मसलन जनसंख्या का स्वरुप, प्राकृतिक आपदा, आतंकी वारदात और अनचाहे युद्ध। और यहीं वो फैक्टर होंगे जो बताएंगे कि आनेवाली दुनिया में अमेरिका की चौधराहट कितने दिनों तक टिक पाएगी।
शीतल जी
अभिवंदन
आपका सामयिक आलेख "बराक ओबामा और ईराक़ की अधूरी दास्तान" पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आप ने सच में ये बताने की कोशिश की हो कि कोई भी देश बाहरी ताकत, चुनौती , प्रशासन अथवा दबाव बर्दास्त नहीं करता . और दूसरा पहलू भी अपने बडे अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है कि " ओबामा जी " के लिए विश्व में दादागिरी उनके लिए हितकर नहीं होगी
बधाई
-विजय तिवारी " किसलय"
good post
स्वतंत्रता-प्रेमी ईराक़ियों ने सद्दाम की तानाशाही कैसे सही?
अमेरिका दुनिया का एक शांति प्रिय देश है जो दुनिया भर से सिरफिरे जेहादियों का सफाया करके इंसानियत की भलाई में जुटा है .....भारत को इस मुहिम में अमरीका का साथ देना चाहिए नही तो मुंबई जैसे हमले भारत में हमेशा होते रहेंगे........
Whatever is going on in Iraq is not easy to solve, it’s happing all over in the world. Wherever the powerful group tries to humiliate minority, country will go into trouble. Form India’s point of view, Saddam’s era was good. Second, Only Peace can restore now in the Iraq, when all Kurd, Sunni and Shiya try work together, now there is Al-quida, so not easy to kick them out.
OBAMA,,,O MA MA ,,IRAQ DHOLE HAI, BINA REASON KA, JO BUSH BAND GAYE HAI OBAMA KE GALE ME....AFGANISTAN ME TO 9/11 THA, BUT IRAQ....
आपने ईराक में अमेरिकी दखल के नतीजों को बखूबी रेखांकित कर दिया है। शिया, सुन्नी और कुर्द के बीच बढी दरार को पाटना और वहां लोकतंत्र के लायक माहौल बनाना बराक के लिए बड़ी चुनौती होगी।
बुश ने जो कचरा फैलाया है उसे समेटने में ही बराक को अभी कुछ साल लग जाएंगे। दुनिया में अमेरिका की दादागीरी वाली पहचान से निजात दिलाने के लिए भी बराक को काफी कुछ करना होगा। उन्हें ये तय करना होगा कि आखिर वो कैसे अमेरिका चाहते हैं।
एक तानाशाह अमेरिका, जिसकी झलक बुश ने दुनिया को दिखाई या फिर ओबामा का अमेरिका.... जो कुछ हटकर होगा... जहां हर देश की स्वायत्तता, स्वतंत्रता का वाकई कुछ मायने होगा...
Bahut Badhiya !
Sundar Abhivyakti...Badhai !!
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''युवा'' ब्लॉग युवाओं से जुड़े मुद्दों पर अभिव्यक्तियों को सार्थक रूप देने के लिए है. यह ब्लॉग सभी के लिए खुला है. यदि आप भी इस ब्लॉग पर अपनी युवा-अभिव्यक्तियों को प्रकाशित करना चाहते हैं, तो amitky86@rediffmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं. आपकी अभिव्यक्तियाँ कविता, कहानी, लेख, लघुकथा, वैचारिकी, चित्र इत्यादि किसी भी रूप में हो सकती हैं.
hi..very true..good stuff u have posted.
Are you using Baraha to type in Hindi? I feel it difficult to use. We need to follow the tables here. Do you know any other user friendly tool...?
keep rock. take care and good day.
वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक - ये तीनों अमेरिका के महान झूठ का पर्दाफाश करते हैं / सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटका कर इराक में शान्ति का प्रोपोगंडा बेमानी है / अफगानिस्तान में अमेरिका की रूचि लादेन को पकड़ने तक ही दिखती है / पाक को लेकर अमेरिकी दुविधा स्पष्ट नज़र आती है जाहिर है की नीति और नियति में फर्क है / अमेरिकी सेना को इराक से वापस बुलाने का फ़ैसला विदेश नीति का हिस्सा है या डूबती अर्थव्यवस्था की मजबूरी है! मंदी में दुनिया की दादागिरी छोड़कर अमेरिका अपने देश की अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे तो बेहतर / ग्लोबलाइजेशन के दौर मे आज हम भले ही गुणगान में लगे हो पर भविष्य में अमेरिका भारत के लिए पुराना बुखार साबित होने वाला है / बराक के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति का ताज वाकई चुनौती भरा है /
bilkul sach hai koi mulk dusre mulk par apna law and orders nahi lagu kar pane me kamayab hoga ho sakta isme mr obama ko kamyabi aur nakamyabi dono word se jhusjhna pade waise aapki article kabil-e-gaur hai apne sach ko ujagar kiya hai aur hopes aage bhi aisa kar pane ki koshish kareigi.ur asha karte hai aisa hi sach ap apni journilsm life me karte rahenge aur ghoot se pardah uthate raehnge.
होली की शुभकामनाएं...................
देर है लेकिन अंधेर नहीं...खब्बू ओबामा के लिए भले ही ये बांए हाथ का काम ना हो लेकिन बहुत हद तक वो इन समस्यायों को पटरी पर ले लाएंगे। हां आर्थिक फ्रंट पर उन्हें जरूर ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
किसी भी देश की हाइजैकिंग शर्मनाक है
अमेरिका दुनिया का सबसे स्वार्थी देश है औऱ इसके शासक भी। ओबामा से उम्मीदें तो पालिए लेकिन ज्यादा नहीं। आखिर वह भी उसी मिट्टी में पले-बढ़े हैं।
मुझे नहीं लगता की इराक की हालत में कोई सुधार आने वाला है क्यूंकि दर असल में कोई चाहता ही नहीं है की ये हालात बदले...बस सब.. अपने अपने स्वार्थ की पूर्ती में लगे है....
aapki taarif karna suraj ho diya dikhana hai,
Praveen Bhatt
http://insideuttarakhand.blogspot.com se
hi pls log on to www.rangkarmi.blogspot.com
यह सब एक अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र का हिस्सा है अमेरिका जिसका सरगना है
आपको ब्लॉ्ग पर देखकर अच्छा लगा।
Saal bhar ho gaye..nayee post ka intezaar hai!!!!!!!!!
ब्लॉग जगत का घिनौना चेहरा अविनाश
भारतीय ब्लॉगिंग दुनिया के समस्त ब्लॉगरों से एक स्वतंत्र पत्रकार एवं नियमित ब्लॉग पाठक का विनम्र अपील-
संचार की नई विधा ब्लॉग अपनी बात कहने का सबसे प्रभावी माध्यम बन सकता है, परन्तु कुछ कुंठित ब्लॉगरों के कारण आज ब्लॉग व्यक्तिगत कुंठा निकालने का माध्यम बन कर रह गया है | अविनाश (मोहल्ला) एवं यशवंत (भड़ास 4 मीडिया) जैसे कुंठित
ब्लॉगर महज सस्ती लोकप्रियता हेतु इसका प्रयोग कर रहे हैं |बिना तथ्य खोजे अपने ब्लॉग या वेबसाइट पर खबरों को छापना उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि बिना गवाही के सजा सुनाना | भाई अविनाश को मैं वर्षों से जानता हूँ - प्रभात खबर के जमाने से | उनकी अब तो आदत बन चुकी है गलत और अधुरी खबरों को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना | और, हो भी क्यूं न, भाई का ब्लॉग जाना भी इसीलिए जाता है|
कल कुछ ब्लॉगर मित्रों से बात चल रही थी कि अविनाश आलोचना सुनने की ताकत नहीं है, तभी तो अपनी व्यकतिगत कुंठा से प्रभावित खबरों पर आने वाली 'कटु प्रतिक्रिया' को मौडेरेट कर देता है | अविनाश जैसे लोग जिस तरह से ब्लॉग विधा का इस्तेमाल कर रहे हैं, निश्चय ही वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग पर भी 'कंटेंट कोड' लगाने की आवश्यकता पड़े | अतः तमाम वेब पत्रकारों से अपील है कि इस तरह की कुंठित मानसिकता वाले ब्लॉगरों तथा मोडरेटरों का बहिष्कार करें, तभी जाकर आम पाठकों का ब्लॉग या वेबसाइट आधारित खबरों पर विश्वास होगा |
मित्रों एक पुरानी कहावत से हम सभी तो अवगत हैं ही –
'एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है', उसी तरह अविनाश जैसे लोग इस पूरी विधा को गंदा कर रहे हैं |
阿彌陀佛 無相佈施
不要吃五辛(葷菜,在古代宗教指的是一些食用後會影響性情、慾望的植
物,主要有五種葷菜,合稱五葷,佛家與道家所指有異。
近代則訛稱含有動物性成分的餐飲食物為「葷菜」,事實上這在古代是稱
之為腥。所謂「葷腥」即這兩類的合稱。 葷菜
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(重定向自五辛) 佛家五葷
在佛家另稱為五辛,五種辛味之菜。根據《楞嚴經》記載,佛家五葷為大
蒜、小蒜、興渠、慈蔥、茖蔥;五葷生啖增恚,使人易怒;熟食發淫,令
人多慾。[1]
《本草備要》註解云:「慈蔥,冬蔥也;茖蔥,山蔥也;興渠,西域菜,云
即中國之荽。」
興渠另說為洋蔥。) 肉 蛋 奶?!
念楞嚴經 *∞窮盡相關 消去無關 證據 時效 念阿彌陀佛往生西方極樂世界
我想製造自己的行為反作用力
不婚 不生子女 生生世世不當老師
log 二0.3010 三0.47710.48 五0.6990 七0.8451 .85
root 二1.414 1.41 三1.732 1.73五 2.236 2.24七 2.646
=>十3.16 π∈Q' 一點八1.34
Behtreen blog.ab aata rahunga kuchh janne kuchh sochne ke liye.
बेहतरीन चिट्ठा
आप दोबारा ब्लॉग पर ध्यान क्यों नहीं देती....इस अनूठे मीडियम को छोड़िए मत....
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