Sunday, April 3, 2011

विश्व कप में जीत की मदहोशी के बाद...

उस ख़ुमार का उफ़ान जारी है, जिस लम्हे की तस्वीरें अभी भी उल्लास और गर्मजोशी के उस माहौल को ज़िन्दा कर रही हैं जिससे 121 करोड़ लोगों का यह देश गुज़रा था, और अब भी गुज़र रहा है। मैंने न्यूज़रूम में अपनी टीम के साथ भारत की ऐतिहासिक विश्वकप जीत के उन क्षणों को बांटा। पूरे देश की तरह मैं अभी भी उस नशे में हूँ। जैसे-जैसे हम विश्वकप जीत के बाद के वक़्त के लिए ख़ुद को तैयार कर रहे हैं, एक भावनात्मक ख़ालीपन का अहसास भीतर छाता जा रहा है।

मैं मुक़ाबले के बाद की चर्चा को टीवी पर देख रही थी, जिसमें विश्वकप के बाद के परिणामों पर काफ़ी अहम सवाल उठाए जा रहे थे। विश्वविजेता का ताज सिर पर पहनने के बाद क्या हम अब अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में बादशाहत स्थापित करने के लिए तैयार हैं। ज़्यादातर लोगों का मानना है कि जहाँ तक बल्लेबाज़ी का सवाल है, हमारा कोई सानी नहीं है। सचिन तेन्दुलकर जैसे महानतम खिलाड़ी, वीरेन्द्र सेहवाग, गौतम गंभीर, युवराज सिंह, सुरेश रैना, और हाँ केप्टन कूल महेन्द्र सिंह धौनी इस बल्लेबाज़ी क्रम की शोभा हैं। यह हमें अविजित एकदिवसीय टीम का तमग़ा दिलाने के लिए पर्याप्त होना चाहिए, टेस्ट मुक़ाबलों में भी शीर्ष पर बने के लिए यह काफ़ी होना चाहिए। हालाँकि धोनी की टीम को अपनी गेंदबाज़ी चमकाने की निश्चित तौर पर ज़रूरत है, जो कि इस शृंखला में और पिछली दूसरी शृंखलाओं में लगातार उम्दा प्रदर्शन करने में नाकाम रही है। ज़हीर ख़ान को छोड़कर हमारे गेंदबाज़ी आक्रमण में ज़रूरी धार की कमी नज़र आती है। हरभजन को भी एक और फिरकी गेंदबाज़ की मदद की ज़रूरत है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि युवराज, जो इस शृंखला में ‘मैन ऑफ़ द सीरिज़’ रहे हैं, ने अपनी ऑलराउण्डर की भूमिका को मज़बूत किया है। हमने उन्हें समान कुशलता और दक्षता से बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी और फ़ील्डिंग करते हुए देखा है। लेकिन एक मज़बूत और आक्रामक गेंदबाज़ी दुनिया में बादशाहत का डंका बजाने के लिए बेहद ज़रूरी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गेंदबाज़ी की कमज़ोरी ही एक समय की अविजित ऑस्ट्रेलियाई टीम के पतन का कारण है।

एक और चुनौती गुरु गैरी के उचित उत्तराधिकारी को खोजने की है। गैरी कर्स्टन ने हाल में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया है। गैरी कर्स्टन का शांत स्वभाव न केवल भारतीय टीम के साथ मेल खाया बल्कि कप्तान धोनी के साथ भी उनकी खूब जोड़ी जमी, जिनकी अगुआई में भारतीय टीम ने इतिहास रच डाला। भारतीय टीम के लिए कोच का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है, और इस बात को ध्यान में रखते हुए यह बात इस बार भी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यह भी अहम होगा कि धोनी अपने आसपास की नयी चुनौतियों से अब कैसे रुबरु होते हैं और उनका कैसे सामना करते हैं। इसमें ही एक चुनौती नए कोच से उनके रिश्ते और समीकरण भी है।

3 comments:

Arun sathi said...

कोच का मुददा तो महत्वपूर्ण तो है ही पर पुरी दुनिया में भारत का डंक बज गया और यह जारी रहेगा।

Unknown said...

mam i m waiting for yr new article? or u stopped your blog?

BLOGPRAHARI said...

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